Shri Madbhagwatgita aur Islam- Vishwa Bandhutav ka Pratyaksh Praman

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श्रीम्दभगवद्गीता के अध्ययन, मनन से यह स्वतः स्पष्ट होता है कि निःसन्देह भारत की सौहार्दमयी संस्कृति की सवंर्धिका है - श्रीम्दभगवद्गीता। मानव, मानवता और मानवीय मूल्यों की संरक्षिका है-श्रीम्दभगवद्गीता। विश्व के सनातन तत्वज्ञान की अवलम्बिका है- श्रीम्दभगवद्गीता। इस्लाम चूँकि सनातन परम्परा से अलग नहीं है इसलिए समस्त मुस्लिम समाज को सलाह है कि गीता का अध्ययन करे तो क़लामुल्लाह का खुला दलील उन्हें इस सहि़फा में मिल जायेगा। मौखिक रूप से श्रीम्दभगवद्गीता की महनीयता का काई भी बखान करे, ब्रहम वाणी कहे या ब्रहमज्ञान कहे यह सब तो भक्ति का उद्गार समझा जाएगा, परन्तु साधारण जनसमाज तो उस कथन का पुष्ट प्रमाण चाहेगा। उक्त कथन का पुष्ट प्रमाण है कुरआन शरीफ धरती पर कुरआन शरीफ अपौरुषेय ग्रन्थ के रुप में स्वतः सिद्ध है इसी अपौरुषेय ग्रन्थ के सुरः-3 आयत संख्या-3 में ऐलान करके कहा गया है कि “मुसद्दी कल्लिमा बैन यदैही” 3/3 अर्थात् वह (कुरआन शरीफ) उन किताबों को सच्चा होने की गवाही देता है जो उससे पहले से मौजूद हैं। हालांकि श्रीगीता और कुरआन में लगभग 3500 वर्ष का अन्तराल है। श्रीम्दभगवद्गीता 5154 वर्षों से महाकाव्य महाभारत के भीष्म पर्व मेे एक ग्रंथांश, किताबचा या सहिफा के रूप में विद्यमान है किन्तु इसके अध्ययन से स्पष्ट होता है कि निःसंदेह यह दिव्य ज्ञान है और कुरआन आज से 1400 वर्ष पहले 23 वर्ष के अन्तराल में परम पवित्र फरिश्ता के द्वारा अवतरित हुआ और पै़गम्बर मोहम्मद साहब के मुख से मानव समाज के लिए प्रस्फुटित हुआ। एकेश्वरवाद का उपदेश, अपने स्वामी और स्वामी के निर्देश पर समर्पण का उपदेश, निराहार व्रत और उपवास से इन्द्रियों के संयम का उपदेश, अनिवार्य और आवश्यक दान का उपदेश, अन्याइयों, आतताइयों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही का उपदेश, जो श्रीम्दभगवद्गीता में पहले दिया जा चुका है, ठीक वही सन्देश तौहीद के नाम से, नमाज के नाम से, रोज़ा के नाम से, जुकात के नाम से, और क़ाफिरों तथा मुनाफिकों के विरोध में कठोर कार्यवाही के निर्देश में कुरआन शरीफ में देखकर ऐसा लगता है कि कुरआन शरीफ में श्रीगीता की ही बातें दुहराई गयी हैं। इतना ही नहीं प्रभु प्रिय पवित्र सुख शान्ति से जीवन जीने की तथा इह लौकिक तथा पार लौकिक शाश्वत आनन्द की व्यवस्था का दोनों ग्रन्थों में समान वर्णन है। सृष्टि के सर्वोत्तम, महानतम, और प्रियतम प्राणी (मख़लूक) इंसान की इंसानियत को संतुलित और देवत्वपूर्ण बनाए रखने का सांचा है श्रीगीता और कुरआन। ब्रहमविद्या योगशास्त्र श्रीम्दभगवद्गीता सम्पूर्ण विश्व में सर्वधर्मानुयायियों द्वारा सहज सप्रेम रूपेण परम सम्माननीय एवं धारणीय है। यह भगवान श्री कृष्ण और शिष्य अर्जुन का संवाद गेय एवं अति मधुर सरल है। इसमें निहित मानवीय मूल्यों का संरक्षण एवं संवर्धन अन्य पवित्र ग्रन्थों द्वारा पूर्णरूपेण सहर्षधार्य है। जीवन तथा मृत्यु अटल सत्य हैं। मनुष्य को यदि परम शाश्वत शान्ति प्राप्त करनी है तो एक ईश्वर, (जो सभी प्राणियों का नियन्ता, साक्षी, भर्ता, शरणदाता एवं परम कृपालु है) जगदीश के शरणागत होना ही श्रेयस्कर, शान्तिप्रदायक तथा मंगलकारी है। यही निर्देश कुरान शरीफ का भी है। इन दोनों पावन-ग्रन्थों में जो स्वीकार्य समानता है उसी को आलोकित करने के लिए उसी सनातन तत्व ज्ञान का पुष्ट प्रमाण प्रस्तुत है ताकि बुद्धिमान मनुष्य भी इस सरस गंगा में अवगाहन कर सकें। विषय सूची समर्पण पपप पुरोवाक् अ धन्यवाद ज्ञापन गप यक़ीनन संसार के सारे इन्सान अभिन्न भाई हैं गपपप प्रस्तुत पुस्तक की प्रेरणा गअ अध्याय-1ः तालिबानियों में श्रीमद्भगवद्गीता 1-19 अध्याय-2ः धार्मिक एकता का अनुपम प्रमाण श्रीम्दभगवद्गीता और इस्लाम 20-23 अध्याय-3ः श्रीम्दभगवद्गीता और र्कुआन शरीफ में ब्रह्मविद्या का चिन्तन 24-31 अध्याय-4ः अभिन्न्ा हैं परमब्रह्म या अल्लाह 32-40 अध्याय-5ः अभिन्न्ा हैं ‘ऊँ’ (ओम) या अल्लाह 41-60 अध्याय-6ः अल्लाह और खुदा-देववाणी संस्कृत की शब्द-सम्पदा 61-88 अध्याय-7ः श्रीम्दभगवद्गीता और र्कुआन की अन्तरंगता 89-109 अध्याय-8ः श्रीम्दभगवद्गीता और र्कुआन में समान सत्य ज्ञान 110-117 अध्याय-9ः आसुरी वृत्तियों के विरुद्ध श्रीम्दभगवद्गीता और र्कुआन 118-125 अध्याय-10ः योगयुक्त श्रीम्दभगवद्गीता और र्कुआन में रोज़ा का निर्देश 126-135 अध्याय-11ः योगयुक्त श्रीम्दभगवद्गीता और र्कुआन में नमाज़ का निर्देश 136-141 अध्याय-12ः श्रीम्दभगवद्गीता में नमस्कार का रहस्य नमाज 142-151 अध्याय-13ः यम अरबी भाषा में-हुकूकुन्न्ाास 152-170 अध्याय-14ः नियम-हुकूकुल्लाह 171-211 अध्याय-15ः श्री कृष्ण भक्तों की कुछ जीवतियाँ 212-234 अध्याय-16ः श्रीम्दभगवद्गीता में निहित योग अन्तर्राष्ट्रिय योग दिवस के रूप में 235-238 अध्याय-17ः परमधाम की महिमा और प्राप्ति का प्रयास 239-245 अध्याय-18ः उपसंहार 246-249 शब्दानुक्रमणिका 251-258

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