पुस्तक परिचय
निघण्टुकोष में पाँच अध्याय हैं। इनमें से प्रथम तीन अध्यायों में कोषकार ने पर्यायवाची, चतुर्थ अध्याय में ऐकपदिक एवं पञ्चम अध्याय में देवतावाची पदों का सङ्कलन किया है। प्रस्तुत अध्ययन में नैघण्टुक काण्ड को शोध का विषय बनाया गया है। निघण्टु के प्रथम अध्याय को दस भागों में विभक्त किया गया है :- प्रथम अध्याय में पृथिवी एवं हिरण्यवाचक; द्वितीय अध्याय में अन्तरिक्ष, साधारण तथा रश्मिवाचक एवं तृतीय अध्याय में दिशा तथा रात्रिवाचक पदों को ग्रहण किया गया है। चतुर्थ अध्याय में उषा तथा दिवसवाचक पदों का अध्ययन है । पञ्चम अध्याय में मेघवाचक तथा षष्ठ अध्याय में वाग्वाचक पदों का अध्ययन किया गया है और यह जानने का प्रयास किया गया है कि उक्त पद किस विशिष्ट सन्दर्भ में प्रयुक्त किये जाते हैं। सप्तम और अष्टम अध्यायों में उदक वाचक नामपदों का व्यापक अध्ययन किया गया है। जहाँ अन्य भाषाओं में उदक वाचक शब्द एक या दो मिलते हैं, वहाँ दैवीवाक् संस्कृत के प्रथम कोष निघण्टु में एक सौ उदक वाचक पद परिगणित हैं । ये सभी शब्द सामान्य उदक के वाचक नहीं हो सकते, यह ध्यान में रखते हुए वेद और वैदिक साहित्य के आधार पर उनके मध्य विभाजक रेखा खींचने का प्रयास किया गया है। नवम अध्याय में नदी वाचक पदों का विस्तृत और विवेचनापूर्ण अध्ययन करने का प्रयास किया गया है। दशम अध्याय में अश्व, आदिष्टोपयोजन तथा ज्वलद्वाचक पदों का अध्ययन किया गया है। उक्त शोधपरक अध्ययन का एकादश अध्याय उपसंहार से सम्बन्धित है । इस अध्याय में पूर्व के समस्त अध्यायों का सार प्रस्तुत किया गया है। इसके अतिरिक्त ग्रन्थ के आरम्भ में निघण्टु के सङ्कलनकर्ता के विषय में अन्तः साक्ष्य एवं अन्य विद्वानों के प्रस्तुत विचारों का विश्लेषणात्मक अध्ययन किया गया है तथा साथ ही निघण्टुकार की परिगणन शैली का परीक्षण करने का भी प्रयास किया गया है।
Title
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वैदिक साहित्य के परिप्रेक्ष्य में निघण्टुकोष के पर्यायवाची नामों में अर्थभिन्नता |
Author |
डॉ. ज्ञानप्रकाश शास्त्री |
Edition |
2019 |
Publisher |
Parimal Publications |
ISBN-13 Digit |
9788171102716 |
ISBN-10 Digit |
8171102719 |
Pages |
896 |
Year |
2019 |
Binding |
Hard Bound |
Language |
Sanskrit |
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