वेद संस्कृत वाङ्मय का प्राचीनतम ग्रन्थ एवं महाज्ञान कोष है। ज्ञान के इस महान वाङ्मय के परिप्रेक्ष्य में भारतीय संस्कृति के वैशिष्ट्य को केन्द्र में रखकर वेद-विद्या के मनीषी विद्वान प्रो. किरीट जोशी ने ‘वेद और भारतीय संस्कृति’ की सृष्टि की है। वैदिक काल में अधिकांश प्राकृतिक शक्तियों को स्वाराध्य देवता मानकर पूजा जाता था। यह दृष्टिकोण व्यावहारिक और उपयोगितावादी था। उपयेगीतावादी ऋचाओं से आरम्भ होकर ऋग्वेद का दर्शन आध्यात्मिक चिन्तन की ऊँचाई तक जा पहँुचा। भारतीय संस्कृति में प्रधान स्वर वस्तुतः धर्म और धर्मशास्त्रों का नहीं, बल्कि पुराणों, उपनिषदों, आरण्यकों, अध्यात्म और सौन्दर्यबोध का है जिसका बहुत ही गूढ़-गम्भीर विवेचन विद्वान लेखक ने इस कृति में किया है। भारतीय संस्कृति में जो लचक, उदारता और उदात्तता मिलती है, ज्ञान और सामाजिक मूल्यों, आध्यात्मिक परम्पराओं की जो महत्ता निहित है, प्रो. जोशी ने अपने गहन चिन्तन और प्रज्ञा-प्रतिभा से उसका बड़ा बारीक विवेचन करते हुए मौलिकता प्रदान की है। कृति में उपनिषदों का महत्त्व, ‘गुरु और शिष्य’, ‘वेद और धर्म की अवधारणा’, ‘धर्म और चतुर्विध सामाजिक व्यवस्था’, ‘अध्यात्म एवं भारतीय संस्कृति’ ऐसे महत्त्वपूर्ण अध्याय हैं जो अध्येता एवं पाठक को नयी दिशा-दृष्टि देते हुए कृति को शाश्वतता प्रदान करते हैं। संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में भारतीय जीवन और विकास एक रहस्य हैं आचार-व्यवहार की व्यवस्था, आस्था-विश्वास और जीवन के चार उद्देश्यों धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के संतुलित उद्यम की जातीय विशेषता का उद्घाटन कृति को अतिरिक्त आयाम देता है। निःसन्देह वेद और भारतीय संस्कृति विषय पर यह कृति अद्वितीय है।
Sub Title |
Ved Aur Bhartiya Sanskriti |
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Author | Prof. Kirit Joshi |
ISBN 13 Digit | 9788187471677 |
Publisher | Standard Publishers (India) |
Binding | Hardcover |
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