ग्रंथ के बारे में
संस्कृत भाषा के पास जो व्याकरण की सम्पदा है, वह अन्य किसी भाषा के पास नहीं है। वैदिक संस्कृत के काल से ही संस्कृत भाषा में अनेक प्रकार के व्याकरण पाये जाते रहे हैं, हमारे यहाँ भाषा चिन्तन की सुदीर्घ और विस्तृत परम्परा रही है। व्याकरण की इस उर्वरा भूमि में चिन्तन के शिखर पर एक ऐसे आचार्य का अवतरण होता है, जिसके व्याकरण के गठन और उसकी शब्द समाविष्ट करने की क्षमता को देखकर आज भी विश्व के विद्वान् आश्चर्यचकित रह जाते हैं । वह स्वनाम धन्य आचार्य कोई और नहीं 'पाणिनि ' हैं। आज भी पाणिनि- व्याकरण का अध्ययन न केवल संस्कृत भाषा के रहस्यों को सुलझाने के लिये अपेक्षित है, अपितु अन्य भारतीय महाद्वीप की भाषाओं के अध्ययन की दृष्टि से भी उसकी महती उपयोगिता है।
प्रस्तुत ग्रन्थ का नाम पाणिनि - कृदन्त प्रत्ययार्थ- कोष : रक्खा गया है, परन्तु इसमें कृदन्तभिन्न प्रत्यय जैसे- नामधातु, लकार प्रकरण और कृत्य प्रत्ययों का भी समावेश किया गया है । अष्टाध्यायी के तृतीय अध्याय में कृदन्त-प्रकरण की प्रधानता होने से सम्पूर्ण ग्रन्थ का कृदन्तपरक नामकरण करना उचित प्रतीत हुआ है।
प्रस्तुत अध्ययन में कोश को तीन भागों में विभाजित किया गया है- १. शब्दकोष:, २. प्रत्ययार्थकोष:, ३. प्रत्ययकोषः। प्रस्तुत कोष के गठन में यह ध्यान रक्खा गया है कि अध्येता शब्द के माध्यम से न केवल अर्थ को जाने अपितु वह शब्द के साथ प्रत्यय, प्रत्ययार्थ, नियम, अवान्तरनियम, काशिका, न्यास, पदमञ्जरी के मतों को भी जान सके। यहाँ तक कि शब्द का प्रयोग और उसमें लगने वाले प्रत्यय के अनुबन्धों के प्रयोजन को भी जान सके। इसी प्रकार प्रत्ययार्थ और प्रत्यय खण्ड में प्रत्यय के साथ प्रत्ययार्थ और प्रत्ययार्थ के प्रत्यय को जानता हुआ उसके अनुबन्ध से परिचित हो सके।
Title
|
पाणिनि-कृदन्त-प्रत्ययार्थ-कोश - कृदन्त के साथ कृत्य, नामधातु और लकार प्रकार भी समाहित |
Author |
प्रो. ज्ञानप्रकाश शास्त्री |
Edition |
1/e |
Publisher |
Parimal Publications |
ISBN-13 Digit |
9788171105427 |
ISBN-10 Digit |
8171105424 |
Pages |
680 |
Year |
2016 |
Binding |
Hard Bound |
Language |
Sanskrit |
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